श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं,
हे गिरिधर तेरी आरती गाऊं ।
आरती गाऊं प्यारे आपको रिझाऊं,
श्याम सुन्दर तेरी आरती गाऊं ।
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं..

मोर मुकुट प्यारे शीश पे सोहे,
प्यारी बंसी मेरो मन मोहे ।
देख छवि बलिहारी मैं जाऊं ।
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं..

चरणों से निकली गंगा प्यारी,
जिसने सारी दुनिया तारी ।
मैं उन चरणों के दर्शन पाऊं ।
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं..

दास अनाथ के नाथ आप हो,
दुःख सुख जीवन प्यारे साथ आप हो ।
हरी चरणों में शीश झुकाऊं ।
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं..

श्री हरीदास के प्यारे तुम हो ।
मेरे मोहन जीवन धन हो।
देख युगल छवि बलि बलि जाऊं ।
श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं..

श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं,
हे गिरिधर तेरी आरती गाऊं ।
आरती गाऊं प्यारे आपको रिझाऊं,
श्याम सुन्दर तेरी आरती गाऊं ।

श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं: पूर्ण विवरण और अर्थ

यह आरती भगवान श्रीकृष्ण की आराधना का एक माध्यम है, जिसमें भगवान को श्रद्धा और प्रेम के साथ नमन किया जाता है। यह भजन विशेष रूप से वृंदावन में स्थित बांके बिहारी जी के प्रति समर्पित है, जो श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप माने जाते हैं। इस आरती के माध्यम से भक्त भगवान की सुंदरता, उनकी लीलाओं और उनके चरित्र का गुणगान करते हैं।

1. श्री बांके बिहारी तेरी आरती गाऊं

इस पंक्ति में भक्त अपने भावों को व्यक्त करता है कि वह भगवान श्रीकृष्ण, जो बांके बिहारी कहलाते हैं, की आरती गा रहा है। गिरिधर भगवान का नाम भी श्रीकृष्ण को संबोधित करता है, जो गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले थे। भक्त भगवान की महिमा और उनकी लीलाओं को आरती के माध्यम से प्रकट करता है।

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1.1 मोर मुकुट प्यारे शीश पे सोहे

यहां भगवान के मोर मुकुट का वर्णन किया गया है, जो उनके सिर पर सुशोभित होता है। यह मुकुट भगवान की दिव्यता और उनकी अद्वितीय सुंदरता का प्रतीक है। उनकी बंसी की धुन भी मनमोहक है, जो भक्तों के मन को अपनी ओर आकर्षित करती है।

1.2 चरणों से निकली गंगा प्यारी

भगवान श्रीकृष्ण के चरणों से गंगा की उत्पत्ति का संदर्भ है, जो संसार को शुद्ध करती है। गंगा को मोक्ष का मार्ग माना जाता है, और यहां यह संकेत दिया गया है कि भगवान के चरण भी उतने ही पवित्र और जीवन देने वाले हैं।

1.3 दास अनाथ के नाथ आप हो

भगवान को अनाथों का नाथ (स्वामी) कहा गया है। वे उन सभी के सहारा हैं, जिन्हें जीवन में कठिनाइयों और दुखों का सामना करना पड़ता है। भक्त भगवान से विनती करता है कि वह अपने जीवन के हर क्षण में उनके साथ रहें।

1.4 श्री हरीदास के प्यारे तुम हो

यहां भक्त का ध्यान श्रीकृष्ण के प्रिय भक्त श्री हरीदास जी पर है। हरीदास जी, जो भगवान के प्रिय थे, उनकी भक्ति और आराधना के माध्यम से बांके बिहारी जी के प्रति असीम प्रेम का उल्लेख किया गया है।

2. आरती का समापन

अंत में, भक्त फिर से भगवान की आरती करने और उन्हें रिझाने का संकल्प लेता है। भगवान के प्रति अपने प्रेम और भक्ति को व्यक्त करते हुए, वह इस आरती को समर्पित करता है।

यह आरती प्रेम, भक्ति और समर्पण का प्रतीक है, जिसमें भगवान की महिमा, सौंदर्य और उनकी दया का वर्णन किया गया है। इसे गाते समय भक्त की भावना यह होती है कि भगवान उसके जीवन में हर पल साथ दें और उसे मुक्ति के मार्ग पर ले जाएं।

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