तुम ही मेरे कृष्णा तुम्ही मेरे कान्हा,
लागी तुझसे प्रीत सुनले मेरे नंदलाला,
हर एक रूप में ध्याऊँ में तुमको,
श्याम भी तुम हो और तुम ही गोपाला ॥
हूँ बेचैन स्वामी क्यूँ हो दूर हम से,
हर पल तुम्हे निहारूँ अपने नयन से,
मुझे तुमने देखा जब भी मेरे कान्हा,
बुझा के हर एक तृष्णा धन्य कर डाला,
तुम ही मेरे कृष्णा तुम्ही मेरे कान्हा,
लागी तुझसे प्रीत सुनले मेरे नंदलाला ॥
ग़र तुम जो साथ मेरे हर पल ही जीत हो,
बंधू – सखा हो सब के राधाजी की प्रीत हो,
गुलशन के फूल हो जीवन के बाग़बान,
संग में सदा ही रहना मुरलीधर माधवा,
तुम ही मेरे कृष्णा तुम्ही मेरे कान्हा,
लागी तुझसे प्रीत सुनले मेरे नंदलाला ॥
तुम ही मेरे कृष्णा, तुम्ही मेरे कान्हा – अर्थ और व्याख्या
यह भक्ति भजन भगवान कृष्ण के प्रति भक्त की गहरी प्रीति और प्रेम को दर्शाता है। भजन में भगवान कृष्ण के विभिन्न रूपों का उल्लेख किया गया है, और यह बताया गया है कि भक्त हर रूप में केवल कृष्ण को ही देखता है। आइए, इस भजन की प्रत्येक पंक्ति का विस्तृत अर्थ समझते हैं।
तुम ही मेरे कृष्णा, तुम्ही मेरे कान्हा
इस पंक्ति में भक्त अपने इष्टदेव भगवान कृष्ण को संबोधित करते हुए कहता है कि आप ही मेरे कृष्ण हो और आप ही मेरे कान्हा हो। “कृष्ण” भगवान विष्णु का अवतार हैं जो जीवन में प्रेम और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। “कान्हा” एक प्यारा संबोधन है जो बालकृष्ण के बाल रूप का वर्णन करता है।
लागी तुझसे प्रीत सुनले मेरे नंदलाला
यहाँ भक्त कहता है कि उसने भगवान से अटूट प्रेम कर लिया है और यह प्रेम केवल कृष्ण के लिए है। “नंदलाला” भगवान कृष्ण को उनके पिता नंद बाबा के नाम से संबोधित किया गया है। भक्त भगवान से विनती कर रहा है कि वे उसकी प्रेम-भक्ति को सुनें और उसे स्वीकार करें।
हर एक रूप में ध्याऊँ में तुमको
इस पंक्ति में भक्त कहता है कि वह भगवान के हर रूप को पूजता और ध्यान करता है। चाहे वह श्याम (कृष्ण का गहरा रंग) हों या गोपाला (गायों के रक्षक), भगवान के हर रूप में भक्त उन्हें ही देखता है।
श्याम भी तुम हो और तुम ही गोपाला
यहाँ श्याम और गोपाला का अर्थ है कि भगवान कृष्ण एक ही समय पर विभिन्न रूपों में प्रकट होते हैं। श्याम का अर्थ कृष्ण के सुंदर, गहरे रंग से है, और गोपाला वह हैं जो गायों के चरवाहे के रूप में जाने जाते हैं। इस पंक्ति में भक्त भगवान के विभिन्न रूपों में उनके सर्वव्यापी होने का गुणगान कर रहा है।
हूँ बेचैन स्वामी क्यूँ हो दूर हम से
यहाँ भक्त अपनी व्याकुलता को व्यक्त कर रहा है कि वह भगवान के बिना बेचैन महसूस कर रहा है। उसे यह महसूस हो रहा है कि भगवान उससे दूर हैं और इस दूरी के कारण वह दुखी है।
हर पल तुम्हे निहारूँ अपने नयन से
भक्त कहता है कि वह हर समय भगवान को अपने आँखों के सामने देखना चाहता है। उसकी आत्मा हर क्षण भगवान के दर्शन की इच्छा रखती है।
मुझे तुमने देखा जब भी मेरे कान्हा
इस पंक्ति में भक्त कहता है कि जब भी भगवान ने उसे देखा, उसकी सभी इच्छाएँ पूरी हो गईं। भगवान की कृपा से उसकी हर तृष्णा बुझ गई है, और वह धन्य हो गया है।
बुझा के हर एक तृष्णा धन्य कर डाला
भक्त यह महसूस करता है कि भगवान कृष्ण ने उसकी हर इच्छा को पूरा कर उसे तृप्त कर दिया है। भगवान की कृपा से वह संतुष्ट और धन्य महसूस कर रहा है।
ग़र तुम जो साथ मेरे हर पल ही जीत हो
यहाँ भक्त कहता है कि अगर भगवान उसके साथ हैं, तो हर पल वह जीत का अनुभव करेगा। भगवान का साथ उसकी हर समस्या को हल कर सकता है।
बंधू – सखा हो सब के राधाजी की प्रीत हो
इस पंक्ति में भगवान कृष्ण को “बंधू” (भाई) और “सखा” (मित्र) के रूप में वर्णित किया गया है। इसके साथ ही भक्त कहता है कि भगवान राधाजी के प्रेमी भी हैं, जो उनकी अनन्य भक्ति और प्रेम को दर्शाता है।
गुलशन के फूल हो जीवन के बाग़बान
यहाँ भगवान को जीवन के बाग़बान के रूप में देखा गया है, जो गुलशन (फूलों का बगीचा) की तरह जीवन को सुंदर और खुशहाल बनाते हैं।
संग में सदा ही रहना मुरलीधर माधवा
भक्त भगवान से प्रार्थना करता है कि वे हमेशा उसके साथ रहें। “मुरलीधर” का अर्थ है वह जो बांसुरी बजाते हैं, और “माधवा” भगवान विष्णु का एक अन्य नाम है। भक्त चाहता है कि भगवान का साथ उसे हर पल मिलता रहे।
निष्कर्ष
इस भजन में भगवान कृष्ण के प्रति भक्ति, प्रेम और समर्पण की भावना को अत्यंत सुंदरता से व्यक्त किया गया है। भक्त हर रूप में केवल भगवान कृष्ण को ही देखता है और उनकी कृपा से धन्य और संतुष्ट महसूस करता है। यह भजन भगवान के प्रति अटूट विश्वास और प्रेम का प्रतीक है, जो जीवन में हर कठिनाई को दूर कर सकता है।